सोमवार, 22 जुलाई 2019

खेतिहर समाज के पथ प्रदर्शक - महाकवि घाघ व कवियत्री भड्डरी

ओम प्रकाश तिवारी

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वर्तमान समय में हमें रेडियो, टीवी, मोबाइल फोन और इंटरनेट के माध्यम से मौसम, स्वास्थ्य और तमाम तरह की जानकारियां मिलती रहती हैं। मौसम की जानकारी देने के लिए सरकारी मौसम विभाग है। पहले इस तरह की सुविधाएं नहीं थी। सरकारी मौसम विभाग भी नहीं होता था। ऐसे में महान किसान कवि घाघ व कवियत्री भड्डरी की कविताएं खेतिहर समाज का पीढ़ियों से पथप्रदर्शन करती आयी हैं। सम्पूर्ण हिन्दी पट्टी क्षेत्र खासतौर से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेष, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के गांवों में ये कहावतें आज भी उतनी ही लोकप्रिय और प्रासंगिक हैं। आज के वैज्ञानिक युग में भी जहां वैज्ञानिकों के मौसम संबंधी अनुमान गलत हो जाते हैं, लेकिन ग्रामीणों की धारणा के अनुसार घाघ व भड्डरी की कहावतें प्रायः सत्य ही साबित होती हैं।

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किसान कवि घाघ और भड्डरी के जीवन के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। माना जाता है कि घाघ का जन्म कन्नौज के पास चौधरी सराय नामक गांव में हुआ था। वह कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे।  भड्डरी घाघ की पत्नी थी। वह अकबर के समकालीन थे। अकबर ने उनकी कहावतों से प्रसन्न होकर उन्हें सराय घाघ बसाने की आज्ञा दी थी, जो कन्नौज से एक मील दक्षिण स्थित है।

घाघ एक अच्छे कृषि पंडित और व्यावहारिक अनुभवी पुरुष थे। उनकी पत्नी भड्डरी भी ज्ञानी स्त्री थी। उनका नाम किसानों के अधरों पर रहता है। बैल खरीदना हो या खेत जोतना, बीज बोना हो अथवा फसल काटना, घाघ और भड्डरी की कहावतें उनका पथ प्रदर्शन करती हैं। वास्तव में महाकवि घाघ खेतिहर समाज के नायक और भड्डरी नायिका हैं।
ये कहावतें मौखिक रूप में भारत भर में प्रचलित हैं। खेतिहर समाज ने घाघ और भड्डरी द्वारा रचित साहित्य का ज्ञान किसी पुस्तक में पढ़ कर नहीं बल्कि श्रुति परंपरा से अर्जित किया है। उनकी कहावतों में बहुत जगह ’कहै घाघ सुनु भड्डरी’, ’कहै घाघ सुन घाघिनी’ जैसे उल्लेख आए हैं।
घाघ और भड्डरी की कविताएं ठेठ अवधी बोली में है।

यहां किसान कवि घाघ और भड्डरी की कुछ कविताएं और उनका अर्थ प्रस्तुत है :

सावन मास बहे पुरवइया।
बछवा बेच लेहु धेनु गइया।।

अर्थात् यदि सावन मास में पुरवइया बयार बह रही हो तो अकाल पड़ने की संभावना है। किसानों को चाहिए कि वे अपने बैल बेच कर गाय खरीद लें, कुछ दही-मट्ठा तो मिलेगा।

शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।

अर्थात यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रहें, तो भड्डरी कहती हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।

रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय।
कहंइ घाघ सुन घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।।

अर्थात् यदि रोहिणी पूरा बरस जाए, मृगशिरा में तपन रहे और आद्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।

उत्रा उत्तर दइ गयी, हस्त गयो मुख मोरि।
भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।।

अर्थात् उत्तरा और हथिया नक्षत्र में यदि पानी न भी बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज ठीक ठाक ही होती है।

पुरवा रोपे पूर किसान।
आधा खखड़ी आधा धान।।

अर्थात् पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा खखड़ी (कटकर) पैदा होता है।

आद्रा में जौ बोवै साठी।
दुःखइ मारि निकारै लाठी।।

अर्थात् जो किसान आद्रा नक्षत्र में धान बोता है वह दुःख को लाठी मारकर भगा देता है।
पहिले जागइ पहिले सौवइ, जो वह सोचे वही होवइ।
घाघ! कहते हैं, रात्रि मे जल्दी सोने से और प्रातःकाल जल्दी उठने से बुध्दि तीव्र होती है। यानि विचार शक्ति बढ़ जाती है।

सावन हर्रइ भादों चीता, क्वार मास गुड़ खाहू मीता।
कातिक मूली अगहन तेल, पूस में करे दूध सो मेल
माघ मास घी खिचरी खाय, फागुन उठि के प्रातः नहाय।
चैत मास में नीम सेवती, बैसाखहि में खाय बसमती।
जेठ मास जो दिन में सोवइ, ताको जुर अषाढ़ में रोवइ
भड्डरी कहती हैं, सावन में हर्रै का सेवन, भाद्रपद में चीता का सेवन, क्वार में गुड़, कार्तिक मास में मूली, अगहन में तेल, पूस में दूध, माघ में खिचड़ी-घी, फाल्गुन में प्रातःकाल स्नान, चैत में नीम, वैशाख में चावल खाने और जेठ के महीने में दोपहर में सोने से स्वास्थ्य उत्तम रहता है, उसे ज्वर नहीं आता।

कांटा बुरा करील का, अउ बदरी का घाम।
सैत बुरी है चून को, और साझे का काम।।
घाघ कहते हैं, करील का कांटा, बदली की धूप, सौत चून की भी, और साझे का काम बुरा होता है।

बिन बेलन खेती करइ, बिन भैयन के रार।
बिन मेहरारू घर करइ, चैदह साख गवांर।।
भड्डरी कहती हैं, जो मनुष्य बिना बैलों के खेती करता है, बिना भाइयों के झगड़ा या कोर्ट कचहरी करता है और बिना स्त्री के गृहस्थी का सुख पाना चाहता है, वह वज्र मूर्ख है।

ताका भैंसा गादरबैल, नारि कुलच्छनि बालक छैल।
इनसे बांचे चातुर लौग, राजहि त्याग करत हं जौग।।
घाघ कहते हैं, तिरछी दृष्टि से देखने वाला भैंसा, बैठने वाला बैल, कुलक्षणी स्त्री और विलासी पुत्र दुखदाई हैं। चतुर मनुष्य राज्य त्याग कर सन्यास लेना पसन्द करते हैं, परन्तु इनके साथ रहना पसन्द नहीं करते।

जबहि तबहि डंडै करै, ताल नहाय, ओस में परइ।
दैव न मारइ आपइ मरइ।।
भड्डरी कहती हैं, जो पुरूष कभी-कभी व्यायाम करता हैं, ताल में स्नान करता हैं और ओस में सोता है, उसे भगवान नहीं मारता, वह तो स्वयं मरने की तैयारी कर रहा है।

विप्र टहलुआ अजा धन और कन्या की बाढ़ि।
इतने से न धन घटे तो करइ बड़ेन से रारि।।
घाघ कहते हैं, ब्राहमण को सेवक रखना, बकरियों का धन, अधिक कन्यायें उत्पन्न होने पर भी, यदि धन न घट सकें तो बड़े लोगों से झगड़ा मोल ले, धन अवश्य घट जायेगा।

खेतिहर समाज के कवि घाघ और कवियत्री भड्डरी ने अपने अनुभवजनित ज्ञान से जो निष्कर्ष निकाले हैं, वे किसी भी मायने में आधुनिक विज्ञान की निष्पत्तियों से अधिक उपयोगी हैं।