रविवार, 3 मई 2020

कोरोना काल : देश की नीतियों का विद्रूप है भुखमरी

ओम प्रकाश तिवारी 

कोरोना काल में में राजधानी दिल्ली से लेकर झारखंड; उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के सुदूर गांवों तक करोड़ों लोग भुखमरी का सामना कर रहे हैं। करोड़ों लोगों के पास न तो राशन कार्ड हैं और न ही आधार कार्ड। लिहाजा इन लोगों को न तो पीडीएस के जरिये राशन मिल रहा और न ही सरकार द्वारा किए जा रहे तात्कालिक उपायों का फायदा मिल पा रहा है। संकट की घड़ी में ऐसे लोग भुखमरी का शिकार हो रहे हैं।
World Food Day: भुखमरी के वो आंकड़े जो बेहद ...

उल्लेखनीय है कि देश में अनाज की कमी नहीं है। अनाज के गोदाम ठसाठस भरे हुए हैं। एफसीआई के गोदामों में कम से साढ़े सात करोड़ टन अनाज भरा हुआ है। इससे पहले इतना अनाज एफसीआई के गोदामों में कभी नहीं रहा था।अनाज रखने की पर्याप्त जगह न होने के कारण इसका बड़ा हिस्सा सड़ रहा है। केंद्रीय खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान कह चुके हैं कि अगले नौ महीने के लिए अनाज देश में मौजूद है। रबी की नई उपज भी तैयार है। इसके बावजूद देश के तमाम हिस्सों से लोगों के भूखे रहने की खबरों का आना पांच ट्रिलियन की इकोनॉमी का सपना देखने वाले इस देश की नीतियों का विद्रूप ही है।

सरकार ने लॉकडाउन के बाद  राहत पैकेज के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली  के जरिये हर देशवासी को तीन महीने तक अतिरिक्त पांच किलो अनाज और एक किलो दाल मुफ्त में देने की घोषणा की थी। लेकिन करोड़ों गरीब जिनके पास राशन कार्ड नहीं है; उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। यह बड़ी आबादी  भोजन की मोहताज है। लॉकडाउन ने इनकी मेहनत-मजदूरी का भी रास्ता बंद कर दिया है। लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार गरीबों और असंगठित क्षेत्र के कामगारों और आदिवासियों पर पड़ी है।

देश में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 2013 राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून लागू हुआ था। इसके तहत केंद्र सरकार राज्य सरकारों के जरिये देश की आबादी का लगभग 67 फीसदी आबादी को हर महीने सस्ते दर पर पांच किलो अनाज देती है। खाद्य सुरक्षा कार्यकर्ता देश के हर नागरिक को पीडीएस के दायरे में लाए जाने की मांग करते रहे हैं। अब कोरोना संकट काल में  यूपी, दिल्ली, झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना समेत कई राज्यों ने हर जरूरतमंद को अनाज देने की घोषणा की है। लेकिन गरीबों के लिए इसकी प्रक्रिया जटिल है। इसलिए देश के हर नागरिक को पीडीएस के दायरे में लाया जाना चाहिए। सरकार को तत्काल एक अध्यादेश लाकर खाद्य सुरक्षा कानून के तहत पीडीएस कवरेज को अपडेट करने के कदम उठाने चाहिए ताकि करोंडो जरूरतमंदों को इसमें शामिल किया जा सके। इसके साथ ही सबको राशन देने के कदम उठाए जाएं।

बुधवार, 29 जनवरी 2020

पतरका पासिन 

ओम प्रकाश तिवारी 
मध्यम छरहरी कद-काठी। लालिमायुक्त गोरा रंग। ईश्वर द्वारा फुर्सत में रचा गया सौम्य एवं सुन्दर रूप। हंसे तो मुख से झरे मिसरी की झरी। बोले तो कोई भी निहाल हो जाए। उम्र यही अस्सी - पचासी साल। उम्र पर मोहिनी सौन्दर्य हावी। उम्र के साथ मादकता भी बढती ही गई। लोग सोचते होंगे कि तरुणाई में तो यह बुढिया कहर ढाती रही होंगी। तमाम बहादुर उसे देख कर बेहोष हो गए होंगे। तमाम पागल हो गए होंगे। ईमानदारी, उसका स्थाई भाव। बीसों गांवों में प्रसिद्धि। असली नाम तो कोई नहीं जानता, हां पतरका पासिन पूंछ लीजिए तो पशु - पक्षी भी बता देंगे पता। 
पतरका पासिन क्षेत्र के हर बच्चे की मां हैं। हर बडे की काकी और बुजुर्गों की भौजाई हैं। समाज की अभिभावक। मजाल है कि कोई किसी के खेत से चना उखाड ले। मजाल है कि कोई आदमी या औरत किसी दूसरे की बुराई कर दे। मजाल है कि किसी से कोई सास अपने बहू की या बहू अपने सास की शिकायत करे। मजाल है कि कोई छात्र या किषोर गलत रास्ता अख्तियार करे। गलत काम करने से पहले इलाके के लोग सौ बार सोचते हैं कि कहीं पतरका पासिन देख ना लें। पतरका गलती करने पर हर किसी को टोक देती थी। उसके सामने अच्छों-अच्छों की घिग्घी बंध जाती थी। दर-असल पतरका के पास सत्य, दृंढनिष्चय और प्रेम की ताकत थी।
पतरका अपने मां-बाप की बेहद दुलारी थी। उसका बचपन बहुत सुख से बीता था। जैसा कि पहले होता था, 13 साल की ही उम्र में मां-बाप ने पतरका के हाथ पीले कर दिए। 16वें साल में गौना दे दिया गया। यह बिटिया पूरे गांव की दुलारी थी। सभी ने दिल पर कलेजा रखकर दुलारी पतरका को विदा किया। पतरका ससुराल आ गई। ससुराल में उसके कदम पडते ही घर-गांव निहाल हो गया। ऐसी सुन्दर और सुषील बहू तो ब्राह्मणों और ठाकुरों के यहां भी अब तक नहीं आई। पूरे इलाके में पतरका के सौन्दर्य और गुण का बखान होने लगा। हर कोई उसकी एक झलक पाने को आतुर था। गांव के तमाम मनचले-छिछोरे पतरका को देखने के लिए बहाने से उसके घर आने लगे। कई भाग्यवानों की नजरे भी पतरका से मिली लेकिन किसी की हिम्मत नहीं पडी कि पतरका से कोई षरारत करे।
घर-गृहस्थी और रसोंई के अलावा पतरका नजर, टोना उतारना और कई तरह की बीमारियों का देषी इलाज भी जानती थी। परिवार में ही जेठानी के बच्चे को नजर लग गई थी। पतरका के एक बार ही झाडने से नजर उतर गई। इसी तरह परधानिन काकी का उखडा पेट पतरका की एक ही मालिष से चंगा हो गया। पतरका की देषी दवा से गांव के कई लोगों की पीलिया ठीक हो गई। इतनी कम उम्र में ही पतरका सहज और सफल प्रसूति कराने की माहिर थी। अब भला मषहूरियत के लिए किसी इंसान को और किसी चीज की जरूरत ही क्या है।
पतरका ससुराल आने के सालभर के अन्दर ही गुनागर दाई के रूप में पूरे इलाके में मषहूर हो गई थी। ससुराल आए अभी हप्तेभर भी नहीं हुआ था कि गांव के ही वैद्य जी की बहू को तकलीफ हुई। पूरा परिवार और गांव परेषान। परेषान भी क्यों ना हो। अभी दो ही साल तो हुआ है, जब वैद्य जी की बहू का बच्चा खराब हो गया था। जब वैद्य जी की गर्भवती बहू की तकलीफ की बात दूल्हन पतरका तक पहुंची तो उन्होंने झट अपनी सास से कहा कि मुझे ले चलो वैद्य जी के यहां, नही ंतो उनकी बहू को बहुत परेषानी होगी। पतरका बहू के पास पहुंची तो वह मारे दर्द के विलख रही थी। दो दर्जन महिलाएं उसे घेर कर बैठी थी। एक तसले में कंडा जलाकर उसमें लोहबान सुलगा दिया गया था। बहू के सिरहाने पर चाकू रखा था। घर के बाहर वैद्य जी जाप कर रहे थे, ताकि सबकुछ अच्छा ही हो। वैद्याइन भी आंगन में खडी मनौतियां मान रही थी।
बहू के पास पहुंचते ही पतरका ने उसकी जेठानी से फुसफुसा कर कुछ जरूरी बातें की। उसके बाद बहू की देह को कई जगह स्पर्ष किया। कुछ अंगों को हल्के से दबाया। फिर कडुवा तेल मंगा कर पेट और कमर की मालिष की। बस कुछ ही देर में वैद्य जी की बेटी दौड-दौड कर थाली बजाने लगी और पूरा घर - गांव सोहर की मधूर-मांगलिक घ्वनि से गूंजने लगा। वैद्य जी को पोता हुआ। पतरका हंसिया अपने साथ लाई थी। हसिये को खौलते पानी में धुला था। उसी हसिए से बच्चे का नाडा काटा और कुएं की जगत पर नहाने चली गई। नहाकर और साफ साडी पहनकर पतरका सीधे वैद्य जी के पास आई और उन्हें पोता होने पर बधाई दी। वैद्य जी कह रहे थे कि ईनाम मांग लो पतरका। मुंह मांगा ईनाम दूंगा। आज तूने मेरा घर रोषन कर दिया है। वैसे भी तू गांव की नई बहू है। इसलिए तेरा हक कुछ ज्यादा ही बनता है।
पतरका ने घूंघट की वोट से मुस्कराते हुए कहा, नहीं बाबा। हम इस काम के लिए कोई ईनाम नहीं ले सकते। बहू का ध्यान रखिये बाबा, खूब खिलाइये-पिलाइये बाबा। उसे नई जिन्दगी मिली है। जच्चा - बच्चा सलामत रखें भगवान। बाकी मुंहमांगा नेग तो हम इस बच्चे की षादी में ले लेंगे। वैद्य जी ने कहा कि एक साडी तो अभी ले ही लो। पतरका ने कहा कि नहीं बाबा, ये काम तो मैं नेकी के लिए करती हूं। बाकी भगवान ने जांगर दिया ही है। हम कमा खा लेंगे। किसी चीज की कमी थोडे ही है। आप सबकी कृपा से सब भरा-पूरा है।
इसी तरह एक बार सुबेदार की पतोहू गर्भवती हुई। सुबेदार पैसे वाले थे, इसलिए षुरू से ही नरसिंगहोम में  महिला डाॅक्टर को दिखा रहे थे। जब समय पूरा हुआ तो पतोहू को नर्सिंगहोम लाया गया। पतोहू को देखते ही। डाॅक्टरनी को पैसे का लोभ उत्पन्न हो गया। सबकुछ नार्मल होने के बावजूद उसने कहा कि जच्चा और बच्चा दोनों की जिन्दगी खतरे में है। तुरन्त आपरेषन करना पडेगा। एक घंटे के भीतर दो लाख रुपये की व्यवस्था करो। अब सुबेदार को काटो तो खून नहीं। जच्चे-बच्चे की रक्षा करनी है, लेकिन दो लाख कहां से आए। सब सोच-विचार में पड गए।
सोच-विचार चल ही रहा था कि गांव से अस्पताल आई एक महिला ने कहा कि डाॅक्टरनी बडी हरामी लग रही है। सबकुछ ठीक तो दिख रहा है। ये पैसे बनाने के लिए आपरेषन करना चाह रही है। जरा पतरका पासिन को बुलाकर दिखा दो, उसके बाद ही आपरेषन का फैसला करो। ये बात सभी को ठीक लगी। आनन-फानन में गांव से पतरका पासिन बोलाई गई। नर्सिंगहोम में पतरका को देखते ही स्टाफ सकते में आ गया। डाॅक्टर और नर्स सब कहने लगी की इसे भगाओ यहां से। ये यहां पर क्यों आई है। पतरका ने आगे बढकर कहा कि ये मेरी बहू है। मैं इसके पास ही रहूंगी। पतरका के नेतृत्व में घर और गांव वालों के तेवर देखकर नर्सिंगहोम स्टाफ षांत हो गया।
पतरका ने सुबेदार को बुलाकर कहा कि पतोहू को सीधे घर ले चलो। सबकुछ ठीक है। भगवान ने चाहा तो कुछ ही देर में थलिया बजेगी। पतरका के कहने पर पतोहू नर्सिंगहोम से वापस घर लाई गई। पतरका ने अपना काम किया और कुछ ही देर में थाली बजने लगी और सोहर गाये जाने लगे। सुबेदार की खुषी का ठिकाना ना रहा। अब सुबेदार साहब पोता होने की खुषी में पतरका को कोई निषानी देना चाहते थे। लेकिन पतरका तो पतरका। उसने साफ मना कर दिया कोई निषानी लेने से। उसने स्वाभिमान से कहा कि आपका पोता ही मेरी निषानी है। अब भला इससे बडी निषानी संसार में क्या हो सकती है। सुबेदार साबह का मुंह बंद। अब क्या करें। वह पतरका को दिल से आषीर्वाद देने लगे। हे भगवान, यह औरत नहीं देवी है। इसकी तो पूजा करनी चाहिए।
इस तरह ससुराल आने के बाद पूरे इलाके के बच्चों का जन्म पतरका की देखरेख में ही हुआ। वह हर गर्भवती बहुओं को पहले से ही जरूरी सलाह दे देती थी। खानपान भी बता देती थी। धीरे-धीरे वह सभी बहुओं की सास बन गई। बहुएं भी पतरका से मिलकर निहाल हो जाया करती थी। पतरका सभी बहुओं और बच्चों को आषीर्वाद देती थी। पतरका पहले हंसिया से नारा काटती थी। बाद में नई ब्लेड से काटने लगी। गांव में चाहे जिसका विवाह हो, पतरका की मौजूदगी षुभ मानी जाने लगी। पतरका भी लडकों के विवाह में नेग लेती थी। हां लडकियों के विवाह में वह कुछ भी लेने से इंकार कर देती थी।
एक बार की बात है। ओझा बाबा तीन पीढी के गहनों की पोटली भूसे में रखकर भूल गए थे। बरसात बाद गांव के ही एक ठाकुर साहब को भूसा बेंच दिया। पतरका पासिन को बतौर मजूर ठाकुर साहब के यहां भूसा पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गई। पतरका हर काम बडे ही मन से करती थी। भूसा खांची में भर-भर कर सिर पर लादकर ढो रही थी। इसी दौरान ओझा बाबा के गहनों की पोटली एक खांची में भूसे के साथ आ गई। पतका ने जैसे ही ठाकुर साहब के दरवाजे पर खांची से भूसा गिराया, गहनों की पोटली दिख गई। पतरका ने पोटली उठाई और वापस ओझा बाबा के पास गई और पोटली उन्हें लौटाते हुए खूब झाडा। कहा कि ऐसे ही भुलनी भवानी रहेंगी तो एक दिन सब लुट जाएगा। बेटवन कमा रहे हैं, तो आप लुटाने बैठे हैं। आज तो मिल गया, लेकिन आइंदा से ना भूलिएगा।
इतना सब सुनकर बाबा के मन में पतरका का सम्मान दूना हो गया। बाबा मन ही मन सोच रहे थे कि आज भी धरती पर इस तरह के नेक लोग हैं। बाबा को सारी रात नींद नहीं आई। गहनों की पोटली वाली बात पतरका ने किसी को भी नहीं बताई। कुछ दिनों तक ओझा बाबा भी ये बात छिपाए रहे। लेकिन एक दिन ओझा बाबा ने पतरका पासिन की ईमानदारी के किस्सा गांव वालों को सुना ही दिया। हर कोई पतरका का बखान कर रहा था। आज के जमाने में मिला माल भला कोई लौटाता है। आज कल तो लोग आंखों का काजल तक चुरा ले रहे हैं। ऐसा काम तो सिर्फ पतरका पासिन ही कर सकती हैं। हाथ आया लाखों का गहना ओझा बाबा को पतरका ही दे सकती हैं। आखिर में बाबा तो भूसे में गहनों की पोटली रखने के बाद भूल ही गए थे। अगर पतरका पोटली ना भी देती तो बाबा क्या कर लेते। ओझा बाबा को तो पतरका को कोई बडा ईनाम देना चाहिए।
इसी तरह एकबार बाग में पतरका पासिन सुअर चरा रही थी। झाडी में नजर गई तो गांव के ही एक लडकी और एक लडका चुम्मा-चाटी कर रहे थे। उनकी देह पर वस्त्र नहीं थे। पतरका की आहट मिलते ही जोडा सतर्क हुआ और जल्द कपडा पहनने लगा। झाडी से बाहर आने के बाद पतरका ने दोनों को डाटकर पास बुलाया। पतरका के सामने आते ही दोनों की सीटी-सपाटी बंद। थर-थर कांप रहे थे। मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी। पतरका ने धीरे से कहा कि तुम दोनों लोग रिष्ते में भाई-बहन लगते हो। यहां पर गांव की नाक कटा रहे हो। बोलों क्या चाहते हो। लडके ने कहा कि एक बार माफ कर दो काकी, दोबारा गलती नहीं करेंगे। लडकी बोली मैं भी ऐसा पाप कभी नहीं करूंगी। दोनों के आंखों से अश्रुधारा निकल रही थी।
पतरका ने पुचकारते हुए कहा कि इस तरह से काम नहीं चलेगा। दोनों लोग सौ-सौ बार कान पकड कर उठो बैठो और कहो कि अब ऐसी गलती कभी नहीं करेंगे। दोनों ने वैसा ही किया। पतरका ने कहा कि जाओ अब मैं ये बात किसी को भी नहीं बताउंगी। मैने कुछ भी नहीं देखा। लेकिन ध्यान रखना कि भगवान सब कुछ देखता रहता है। उसकी निगाह से कोई नहीं बच सकता। अब जाओ और पढने में मन लगाओ। कुछ बनकर मां-बाप का नाम रोषन करो। ई कुकुर-छिनारा से गांव और परिवार सबकी बदनामी होती है। हमार गांव अभी इन सब बुराइयों से दूर है। गांव में दाग लग जाएगा तो पूरा गांव मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा।
भगवान की भी अजब लीला है। जिसको धरती पर भेजते हैं, उसे बुला भी लेते हैं। पतरका की उम्र भी संकेत कर रही थी कि अब चली-चला की बेला है। अगर आदमी चलते-फिरते ही गुजर जाए तो वह बडा भाग्यवान माना जाता है। कहते हैं कि जो इंसान नेकी करता है वह ऐसे ही चलते-फिरते, हंसते-खेलते एक दिन संसार को अलविदा कह देता है। एक दिन पोतों के साथ हंसी-मजाक करते-करते पतरका की आंखें हमेषा के लिए बंद हो गई। यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई। देखते ही देखते पतरका के दरवाजे पर हजारों लोगों की भीड जमा हो गई। इतनी भीड किसी मंत्री या विधायक के मरने पर क्या इकट्ठी होती। हर कोई पतरका की नेकियों के गुण गा रहा था।