शुक्रवार, 18 जून 2021

विश्लेषण : मायावती की सोच से आगे निकल चुकी है दलितों की नई पीढ़ी,

नेतृत्व से सवाल करने व सलाह देने का हिमायती है दलित युवा 


लखनऊ। क्या बहुजं समाज पार्टी अवसान की ओर अग्रसर है? बीएसपी सुप्रीमो मायावती द्वारा गत दिनों दो पुराने वफादारों लालजी वर्मा और राम अचल राजभर को पार्टी से निष्कासित करने के बाद ये सवाल मौजू है। हालांकि मायावती अपनी धुन में मस्त हैं। वह अलग तरह की राजनीति करती हैं। शायद उन्हें गलतफहमी है कि कम से कम उत्तर प्रदेश का दलित तबका आज भी सिर्फ उन्हीं पर भरोसा करता है। दलित मतदाता सिर्फ हाथी का ही बटन दबाता है। लेकिन ये सब अब गुजरे जमाने की बातें हो गई हैं। आज दलित तबके के सामने विकल्पों की कमीं नहीं है। पूरब में ओम प्रकाश राजभर का तेजी से उभार हुआ है तो पश्चिम में चंद्रशेखर आजाद रावण दलितों की पहली पसंद बन चुके हैं। मध्य यूपी और बुंदेलखंड में भी नया दलित नेतृत्व उभरा है। 


दरअसल, दलितों की नई पीढ़ी की सोच 'जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी' की सोच से कहीं आगे निकल चुकी है। दलितों नई पीढ़ी नेतृत्व के लिए उतावली है। नई सदी का पढ़ा-लिखा दलित नौजवान अपनी सोच पर अमल की आकांक्षा रखता है। वह नारे लगाने के साथ सभा को संबोधित भी करना चाहता है। वह नेतृत्व से सवाल करने और सलाह देने का हिमायती है। जाहिर है कि मायावती के रहते ये सब बीएसपी में संभव नहीं है।  


उल्लेखनीय है कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती का मिजाज सेना के कमांडर जैसा है। पार्टी में रहकर उनके आदेशों की अवहेलना करने की कोई सोच भी नहीं सकता। किसी भी नेता या विधायक को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना उनके लिए बाएं हाथ का खेल है। बीएसपी के जिस भी नेता ने उन्हें सलाह देने की हिम्मत की उसे पार्टी से बाहर होने में देर नहीं लगी। यही वजह है कि किसी भी पार्टी के साथ बीएसपी का गठबंधन अधिक दिनों तक नहीं चल सका।


कांशीराम की राजनीतिक उत्तराधिकाई बनने के बाद मायावती ने एक-एक कर बीएसपी के सभी पुराने नेताओं बरखुराम वर्मा, आरके चौधरी, सोनेलाल पटेल, ओम प्रकाश राजभर, जंग बहादुर पटेल, नसीमुद्दीन सिद्दीकी आदि नाताओं को पार्टी से निकाल दिया। इन सभी नेताओं के दम पर ही बीएसपी का उभार हुआ था। इसके बाद भी मायावती द्वारा पार्टी के वफादारों को पार्टी से निष्कासित किया जाता रहा। इसी के साथ बीएसपी सुप्रीमों ने अपने भाई और भतीजे को भी पार्टी में स्थापित कर दिया। अब मायावती बीएसपी के मेन्द्र में हैं और बचे-खुचे नेता उनकी परिक्रमा कर रहे हैं। दलितों की इस पार्टी में अब मायावती के बाद सिर्फ सतीश मिश्रा की ही चलती है। ये बात दलितों को खासतौर से खलती है। 


इन परिस्थितियों में राजनीति के जानकार बीएसपी के अवसान की बातें करने लगे हैं। हालांकि कई दलित चिंतक ऐसी संभावना को खारिज करते हैं। उनका कहना है कि आज बीएसपी सर्वजन की पार्टी बन चुकी है। समाज के हर तबके के लोग मायावती की सरकार को अन्य सरकारों से बेहतर मानते हैं। अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनव में मायावती के नेतृत्व में बीएसपी कामयाबी की कहानी फिर दोहराएगी।  


.....................................................................................................................................................................


Father डे (पितृ दिवस), पिता को सम्मान देने का ख़ास दिन 


हम सब अपने पिता के ही अंश होते हैं। पिता ही परिवार की धुरी होता है। पिता की ही करनी से परिवार उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होता है। पिता के बिना परिवार अधूरा होता है। एक पिता सारे दुःख-संताप चुपचाप सहकर अपने बच्चों और परिवार का पालन पोषण करता है। सच कहा जाए तो किसी भी व्यक्ति के निर्माण में पिता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पुत्र के लिए पिता ही आदर्श होता है। इसलिए पिता को सम्मान देने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग एक शताब्दी पूर्व फादर्स डे (पितृ दिवस) मनाने की परंपरा शुरू हुई, जो आज पुरे विश्व में  मनाई जाने लगी। फादर्स डे (हर साल जून महीने के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। इस वर्ष फादर्स डे 20 जून को मनाया जाएगा। हालांकि महामारी के चलते इस बार भी फादर्स डे का रंग फीका ही रहेगा।  


फादर्स डे पितृत्व की यात्रा और परिवार की संरचना व समाज में पिता की भूमिका का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है। यह दिन उन योगदानों को मान्यता देता है जो पिता अपने बच्चों के जीवन में करते हैं। पश्चिमी देशों में यह दिन पिता के लिए सबसे बड़े सम्मान का दिन होता है। पश्चिमी देशों की देखादेखी ही भारतीय उपमहाद्वीप में भी फादर्स डे मनाया जाने लगा। पिछले दो दशकों से तो यह भारत में ख़ास दिन बन चुका है। लोग इस दिन का बड़ी बेसब्री से इन्तजार करते हैं। पिता भी अपने बच्चों से विशेष सम्मान पाकर अविभूत होता है।   


फादर्स डे विश्व के देशों में अलग-अलग दिनों में मनाया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, भारत, चीन, जापान, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका जैसे तमाम देशों में फादर्स डे जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। हालांकि कई देशों में पितृ दिवस अलग दिन मनाया जाता है। रूस में यह 23 फरवरी, 19 मार्च को स्पेन में, जून के पहले रविवार को स्विट्जरलैंड में, जून के दूसरे रविवार को ऑस्ट्रिया और बेल्जियम में, 21 जून को लेबनान, मिस्र, जॉर्डन में मनाया जाता है। इसी तरह सीरिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि में सितंबर के पहले रविवार को मनाया जाता है। 


........................................................................................................................................................


फादर्स डे का महत्व 


माता जन्मदात्री है। वह जन्म देने के साथ ही परिवार को संस्कारित करती हैं, संवारती है। अपने बच्चों का पालन-पोषण करती हैं। माता की ही तरह पिता भी परिवार की धुरी होता है। जिस तरह सौर्य परिवार का मुखिया सूर्य होता है और सौर्य परिवार के सभी गृह अपने मुखिया आर्थर सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं, उसी तरह परिवार के सारे सदस्य पिता की परिक्रमा करते हैं। पिता ही परिवार के नायक हैं, आत्मविश्वास के स्तंभ हैं। पिता परिवार की रीढ़ होते हैं। जीवन को अनुशासित, नैतिक बनाने और हर मोड़ पर मार्गदर्शन प्रदान करने में बच्चों के जीवन में अहम भूमिका निभाते हैं। अवधि बोली में कहावत भी है - 'बाढ़ें पूत पिता के धर्में, खेती उपजे अपने कर्मे'। पिता के ऊपर यह कहावत आज भी पूरी तरह से चरितार्थ है। 


पिता का जीवन पर्यन्त अपने बच्चों का जीवन सवांरने, उनकी हर ख्वाइश पूरी करने के लिए संघर्ष  करता है। इसे वह अपना पवन कर्तव्य मानता है। पिता भले ही कभी मां की तरह खुलकर बच्चों के प्रति अपने प्यार को जाहिर नहीं करता है, लेकिन उनकी जिंदगी का मकसद अपने बच्चे की तरक्की और खुशहाली ही रहती है। उनकी डांट में जो मिठास होती है वो बड़े हो जाने पर समझ आती है। इसलिए बच्चों का भी यह कर्तव्य है की वह अपने पालनहार के लिए वर्ष में एक दिन को ख़ास बनाये। 


पिता हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। एक पिता-पुत्र, पुत्री का रिश्ता बहुत ही अंतरंग होता है। यह दिन इस रिश्ते को और मजबूत करता है। फादर्स डे हमें पिता के प्रति अपने प्यार, प्रशंसा कृतज्ञता को व्यक्त करने का अवसर देता है। यह दिन दुनिया भर में पिता के बलिदानों की सराहना करता है। फादर्स डे एक अच्छा मौका है, अपने पिता को ये बताने का कि आप उन्हें कितना समझते हैं और परिवार को साथ लेकर चलने के उनके संघर्ष की अनुभूति आपको है। इस दिन अपने बच्चों से विशेष सम्मान पाकर पिता खुद पर गर्व महसूस करते है। इसलिए बच्चे भी भावनात्मक रूप से अपने पिता के करीब आते है। इस तरह फादर्स डे का मुख्य मकसद पिता का सम्मान करते हुए उनके आदर्श पथ पर चलकर आदर्श परिवार और समाज की स्थापना करना है। 


........................................................................................................................................................................


फादर्स डे पर विशेष : ऐसे हुई शुरुआत 


 फादर्स डे की शुरुआत पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है, लेकिन पिता को समर्पित यह वैश्विक पर्व पश्चिमी देशों से पूरी दुनिया में फैला। जहां तक भारत की बात है तो यहां वर्ष में दो बार चैत मॉस और अश्वनी मास के कृष्ण पक्ष में पितृ पखवारा होता है। पिता समेत सभी पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाती है। लेकिन पिछले दो दशकों से फादर्स डे भारत में भी मनाया जाने लगा है। फादर्स डे मनाने की एक निश्चित दिन भी नहीं है, लेकिन दुनिया के अधिकांश देशों में यह तून माह के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। वैसे फादर्स डे की उत्पत्ति के बारे में दो कहानिया काफी कुछ स्पष्ट हैं। 


पहली कहानी के अनुसार 1910 में, मदर्स डे चर्च सेवा के दौरान वाशिंगटन के सोनोरा स्मार्ट डोड नाम के एक व्यक्ति ने सुझाव दिया कि एक मां की तरह पिता को भी समान रूप से सम्मानित किया जाना चाहिए। जिस तरह हम अपनी माताओं को प्यार और सम्मान देते हैं और मदर्स डे मनाते हैं। उसीतरह हमें पितृ दिवस भी मनाना चाहिए। दरअसल सोनोरा स्मार्ट डोड जब वह 16 साल की थी तब उसने अपनी मां को खो दिया था और उसके पिता ने उसकी और उसके अन्य पांच भाई-बहनों का पालन-पोषण किया था। 


कहानी के अनुसार सोनोरा स्मार्ट डोड के पिता एक अमेरिकी गृहयुद्ध वेटरन थे। वह गई और स्पोकेन के मंत्रिस्तरीय संघ से संपर्क किया और उनसे पांच जून को फादर्स डे घोषित करने का निवेदन किया। इसी दिन उनके पिता का जन्मदिन था। हालांकि मंत्री ने सोनोरा द्वारा सुझाई गई तिथि के बजाय 19 जून को फादर्स डे मनाने का फैसला किया। उसी समय से वाशिंगटन में हर वर्ष जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाने की परंपरा  शुरू हुई। 


वाशिंगटन में शुरू हुए इस नए पर्व की अवधारणा को जल्द ही अन्य शहरों में चुना गया। अमेरिका के विभिन्न राज्य और संगठन फादर्स डे को वार्षिक कार्यक्रम घोषित करने के लिए पैरवी कर रहे थे। 1919 में राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने इस विचार को मंजूरी दी। राष्ट्रपति केल्विन कूलिज ने इसे 1924 में एक राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाया। 1966 में राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने एक राष्ट्रपति पर हस्ताक्षर करके फादर्स डे को एक राष्ट्रीय स्मारक दिवस बनाया और जून में तीसरा रविवार फादर्स डे होगा। 1972 में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इस उद्घोषणा को स्थायी बना दिया। 


दूसरी कहानी के अनुसार ग्रेस गोल्डन क्लेटन उन बच्चों के लिए फादर्स डे स्थापित करना चाहती थी, जिन्होंने एक खदान विस्फोट में अपने पिता को खो दिया था। इस दुर्घटना ने कस्बे के लगभग 360 लोगों की जान ले ली। क्लेटन चाहती थी कि बच्चों के लिए अपने पिता का सम्मान करने और उन्हें याद करने का एक दिन होना चाहिए। इस तरह सोनोरा स्मार्ट डोड के प्रस्ताव के बाद फादर्स डे की शुरुआत हुई और यह एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम बन गया। 


.....................................................................................................................................................................


फादर्स डे को इस तरह बनाएं ख़ास, पिता से ले प्रेरणा  


फादर्स डे या पितृ दिवस सभी पिताओं, दादाओं और पूर्वजों, उनके असंख्य बलिदानों तथा नैतिक मूल्यों को प्रतिष्ठा देने के लिए समर्पित है। इसलिए हर कोई सोचता है कि फादर्स डे ख़ास तरह से मनाएं। आमतौर पर इस दिन परिवार के सभी सदस्य एक साथ इकट्ठा होते हैं और जश्न मनाते हैं। यदि पिता दिवंगत हो चुका है तो उसके आदर्शों पर चर्चा करते हैं। पिता के साहस और पारिवारिक व सामाजिक उपलब्धियों को याद करते है। इस दिन लोग पिता द्वारा सुझाये गए आदर्शों पर चलने का संकल्प लेते हैं। बच्चे अपने पिता को उपहार देते हैं। इस दिन स्कूलों में बच्चों को उनके जीवन में पिता की भूमिका के महत्व को सीखने के लिए सांकृतिक एवं सामजिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। अब तो सामाजिक संगठन भी फादर्स डे पर कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। 


भारत में फादर्स डे पर बच्चे स्पेशल केक तैयार करते हैं। इस दिन को ख़ास बनाने के लिए तरह-तरह के व्यंजन बनाते हैं। बहुत से लोग लोग अपने पिता को तीर्थ यात्रा आदि भी कराते हैं। इधर कुछ सालों से महानगरों में फादर्स डे पर सामूहिक आयोजन भी होने लगे हैं। पिछले कुछ सालों से भारत में फादर्स डे का क्रेज तेजी से बढ़ा है। इस दिन सोशल मीडिया पर की गई पोस्ट भी ख़ास होती है। अखबार भी फादर्स डे पर स्पेशल पेज प्रकाशित करने लगे हैं। 


इस साल वैश्विक कोरोना महामारी के कारण फादर्स डे का जश्न परिवार के सदस्यों के साथ घर पर ही मनाया जाएगा। लेकिन अगर आप चाहे तो लॉकडाउन में भी अपने पिता के लिए इस दिन को खास बना सकते हैं। बिना बाहर जाए आप उनके लिए हाथों से गिफ्ट तैयार करें। इसके अलावा आप उनकी मनपसंद की चीजें भी बना सकते हैं। इन दिनों घर पर केक बनाना काफी आसान है, ऐसे में केक काटकर उन्हें विश करना न भूलें। फादर्स डे पर अपने पिता को एक नोट लिखकर जरूर बताएं कि आप उनके लिए कितने खास हैं। ये तरीके पिता को भी खूब पसंद आएंगे। तो, यह दिन अपने पिता को ढेर सारा स्नेह, प्यार और देखभाल देने का है। हैप्पी फादर्स डे! 


..................................................................................................................................................................


भारत में फादर्स डे : दो दशकों में तेजी से फैला पिता को सम्मान देने का पर्व 


भारतीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक परंपरा में पिता का स्थान सर्वोच्च होता है। पिता और पूर्वजों को सम्मान और श्रद्धांजलि देने के लिए वर्ष में दो बार चैत और क्वार मास में पितृ पक्ष या पितृ पखवारा होता है। पूरे पखवारे लोग श्राद्ध करते हैं और तिथि के दिन दान आदि करते हैं। लेकिन  आधुनिकता की चकाचौंध में विगत कुछ दशकों से भारत में पिता को सम्मान देने के लिए फादर्स डे मनाया जाने लगा है। हालांकि इस दिन देश में सार्वजनिक अवकाश नहीं होता है। इसके बावजूद यह काफी प्रचलित हो गया है। सोशल मीडिया के इस दौर में तो फादर्स डे पर बधाइयों का तांता लगा रहता है। मुख्य धारा की मीडिया में भी फादर्स डे पर ख़ास कवरेज होती है। अखबार तो इस दिन को पूरा पेज ही देने लगे हैं। 


फादर्स डे पर क्या बच्चे, क्या बूढ़े सभी अपने पिता के साथ सोशल मीडिया में फोटो शेयर करते है और मेसेज के द्वारा उन्हें बधाई देते है। अब तो इस दिन स्कूलों में बच्चों को उनके जीवन में पिता की भूमिका के महत्व को सीखने के लिए सांकृतिक एवं सामजिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। अब तो सामाजिक संगठन भी फादर्स डे पर कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। नई पीढ़ी को पिता और परिवार के संस्कारों के बारे में बताया जाता है। बच्चे पिता को समर्पित कविताएं व कहानिया सुनाते हैं। 


हालांकि भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा में हर दिन और हर पल पिता को सम्मान देने का है। यहां दिन की शुरुआत ही माता और पिता के चरण स्पर्श से होती है। रूढ़िवादियों का कहना है कि पिता या पूर्वजों को सम्मान देने के लिए किसी खाद दिन की जरुरत नहीं है। फादर्स डे पश्चिमी सभ्यता की नकल है। वहीँ प्रगतिशील सोच के लोगों का कहना है कि फादर्स डे की अवधारणा कहीं की हो, इसी बहाने कम से कम एक दिन तो बच्चे अच्छे संकल्पों से साथ पिता को सम्मान देते हैं। उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प लेते हैं। अगर हम पिता को हमेशा सम्मान देते रहेंगे तो परिवार के साथ ही समाज भी आदर्श पथ पर अग्रसर होगा। 


................................................................................................................................................................................



गंगा दशहरा : पृथ्वी पर मां गंगा के अवतरण का दिन


गंगा दशहरा सनातन मतावलंबियों का एक प्रमुख पर्व है। यह ज्येष्ठ मास शुक्ला पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इसे गंगा दशमी भी कहते हैं। इस पर्व में स्नान, दान, व्रत और शुभ संकल्प का विशेष महत्व होता है। इस पर्व पर जल की प्रतिष्ठा भी होती है। जहां पर गंगा या दूसरी पवित्र नदी नहीं है, वहा, पर लोग तालाब का ही पूजन कर गंगा दशहरा मनाते हैं। गंगा दशहरा पर्व सनातन संस्कृति का एक पवित्र पर्व  है, जो विभिन्न रूपों में पूरे देश में मनाया जाता है। 


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के कमंडल से पतित पानी मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। पृथ्वी पर अवतार से पहले गंगा नदी स्वर्ग का हिस्सा हुआ करती थीं। गंगा दशहरा के दिन गंगा में स्नान करने से मनुष्य अपने समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। स्नान के साथ साथ इस दिन दान-पुण्य करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। पतित पावनि मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के उपलक्ष्य में ही गंगा दशहरा पर्व मनाने की परम्परा शुरू हुई थी। 


भारतीय राष्ट्रीय पंचांग के अनुसार, गंगा दशहरा पर्व प्रति वर्ष ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह यह तिथि 10 जून सोमवार को पद रही है। गंगा दशहरा पर सनातनधर्मी प्रयगराज, गढ़मुकेश्वर, हरिद्वार, ऋषिकेश, वाराणसी, पटना और गंगासागर में पवित्र डुबकी लगाते हैं। गंगा दशहरा के दिन दशाश्वमेध घाट वाराणसी और हर की पौरी हरिद्वार की गंगा आरती विश्व प्रसिद्ध है। यमुना तट पर बसे पौराणिक नगरों मथुरा, वृंदावन और बेटेश्वर आदि में भी भक्त यमुना को मां गंगा मानकर स्नान एवं पूजन करते हैं। 


मां गंगा का शुभ मंत्र


'नमो भगवते दशपापहराये गंगाये नारायण्ये रेवत्ये शिवाये दक्षाये अमृताये विश्वरुपिण्ये नंदिन्ये ते नमो नम:' अर्थात हे भगवती, दसपाप हरने वाली गंगा, नारायणी, रेवती, शिव, दक्षा, अमृता, विश्वरूपिणी, नंदनी को मेरा नमन। 


सनातन परंपरा के अनुसार पतित पानी मां गंगा की आराधना करने से व्यक्ति को दस प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। गंगा ध्यान एवं स्नान से प्राणी काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, ईर्ष्या, ब्रह्महत्या, छल, कपट, परनिंदा जैसे पापों से मुक्त हो जाता है। गंगा दशहरा के दिन भक्तों को मां गंगा की पूजा-अर्चना के साथ दान-पुण्य भी करना चाहिए। गंगा दशहरा के दिन सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दोगुना फल की प्राप्ति होती है।


...........................................................................................................................................................................


भारतीय लोक जीवन में व्यापकता के साथ उपस्थित हैं मां गंगा 


पतित पावनि गंगा भारत के लोक जीवन की मां है। सनातनी समाज गंगा को जीवन दायिनी माता के रूप में देखता है। हिन्दी पट्टी में प्रचलित लोक गीतों और लोक कथाओं में गंगा का मुक्ति प्रदान करने वाला रूप उभर कर आता है। कजरी, चैती और होली-जैसे मौसमी गीतों, जन्म, मुंडन, विवाह और मृत्यु से जुड़े संस्कार गीतों, पराती, भजन- सभी में गंगा की मौजूदगी इसी रूप में देखी जा सकती है। दैनिक धार्मिक कृत्यों और पूजनोत्सवों में लोग गंगा का आवाहन कर उनके प्रति कृतज्ञता का भाव व्यक्त करते हैं। विभिन्न पर्वों पर गंगा स्नान के लिए उमड़ते जनसमूह को देख कर गंगा के प्रति  कृतज्ञता के इस भाव को सहजता से देखा जा सकता है।


सनातन लोक समाज में आदिकाल से ही जागते-सोते गंगा के स्मरण की परम्परा रही है। भोर में उठते ही ‘पराती’ गाने की परम्परा अति प्राचीन है – ‘प्रात: दरसन दीय ए गंगा मइया, प्रातः दरसन दीय।’ इसी तरह रात को सोते समय गाए जाने वाले भजन में भी मां गंगा की ही याद आती है। वह किसान के खेत की भी रखवाली करती हैं – ‘हारल थाकल घरे चली अइनी, तोहरे हवाले करी खाद, मुदई के नईया डुबा द मझदार में, इहे बाटे हमरो गोहार, ए गंगा मईया।’ 


लोक संस्कार में गंगापूरी तरह से घुली हुई हैं। जन्म, मुंडन, विवाह और मृत्यु-जैसे चारों महत्त्वपूर्ण संस्कारों में गंगा के महत्त्व को देखा जा सकता है। जब बालक पैदा होता है तो बरही के दिन गंगा की भी पूजा होती है। इसी तरह मुंडन का बाल भी मां गंगा को चढ़ाया जाता है। विवाह का पहला निमन्त्रण भी  गंगा को ही दिया जाता है। विवाह गीतों में औरतें इस गीत को गाती भी हैं – ‘पहले नेवता पेठाई मइया गंगा, दूसरे में शिव भगवान हो, जइसे बहतऽ रहे गंगा के धार, ओइसे बढ़ले एहऽबात हो।’


इसी तरह समाज के विभिन्न समुदायों में गंगा पूजन के विधि-विधान और गीत मौजूद हैं। मल्लाह, कुजड़ा और दुसाध समुदाय में प्रचलित गंगा पूजन की परम्परा अन्य समुदायों से भिन्न है। सवर्णों में गंगा पूजन सिन्दूर, गुड़ और चुनरी से होता है। दुसाधों की पूजा सामाजिक होती है। वह गाँव में घूमकर अपने यजमान से पिठार के लिए जौ और कुछ पैसा लेता है। तब आकर गंगा दशहरा के दिन, गंगा की पूजाई करता है और अपने-अपने यजमान के घर करधनी, लौंग ओर सिन्दूर प्रसाद के रूप में देता है।


कुजड़ा जाति के लोग धर्म से मुसलमान होते हैं। लेकिन हिन्दू ‘तुरहा’ की तरह उसका कार्य में भी फल का व्यापार होता है। पहले व्यापार के लिए जलमार्ग का ही उपयोग किया जाता था। गंगा बड़ी नदी थी। अपशगुन न हो, उसके लिए कुजड़ा भी गंगा का पूजन करते। यह पूजा भादों के महीने में मघा नक्षत्र में होती है। इस पूजा के दौरान औरतें कागज की नाव बनाकर उसमें फल भर देती हैं और गंगा के गीत गाती है। वे खाद-खीद्दत का स्मरण करते, गीत गाते हुए गंगा घाट पर या किसी तालाब पर जातीं और उसी में फल से भरे नाव को छोड़ आतीं।


कल्याणकारी मां के रूप में गंगा की यह लोक व्याप्ति भारतीय संस्कृति की रीढ़ है। वह देवी और नदी, दोनों रूपों में उद्धार करने वाली हैं। यही कारण है कि लोकगीत, लोककथा, कहावत और पहेलियों – लोक-साहित्य और संस्कृति के प्रत्येक आयाम में व्यापकता के साथ उपस्थित हैं।


..........................................................................................................................................................................


सुनें या पढ़ें मां गंगा अवतरण की पौराणिक कथा, होगा कल्याण 


'हरि अनंत हरि कथा अनंता' की तरह ही पृथ्वी पर मां गंगा के अवतरण की भी अनंत कथाएं हैं। लेकिन जो प्रमुख कथा है उसे यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में अयोध्या में सगर नाम के महाप्रतापी राजा राज्य करते थे। उनके केशिनी तथा सुमति नामक दो रानियां थीं। पहली रानी के एक पुत्र असमंजस और दूसरी रानी सुमति के साठ हज़ार पुत्र थे। एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया और यज्ञ पूर्ति के लिए एक घोड़ा छोड़ा। इंद्र ने उस यज्ञ को भंग करने के लिए यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया और उसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध आए। राजा ने उसे खोजने के लिए अपने साठ हज़ार पुत्रों को भेजा। सारा भूमण्डल छान मारा फिर भी अश्व नहीं मिला। 


राजा सगर के सभी पुत्र अश्व को खोजते-खोजते जब कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचे तो वहाँ उन्होंने देखा कि महर्षि कपिल मुनि तपस्या कर रहे हैं। पास में ही अश्व बंधा है। सगर के पुत्र उन्हें देखकर ‘चोर-चोर’ शब्द करने लगे। इससे महर्षि कपिल की समाधि टूट गई। ज्यों ही महर्षि ने अपने नेत्र खोले त्यों ही सब जलकर भस्म हो गए। अपने पितृव्य चरणों को खोजता हुआ राजा सगर का पौत्र अंशुमान जब मुनि के आश्रम में पहुंचे तो गरुड़ ने भस्म होने का सारा वृतांत सुनाया। गरुड़ जी ने यह भी बताया कि इनकी मुक्ति के लिए गंगाजी को स्वर्ग से धरती पर लाना पड़ेगा। 


अंशुमान ने घोड़े सहित यज्ञमण्डप पर पहुंचकर सगर से सब वृतांत कह सुनाया। महाराज सगर की मृत्यु के उपरान्त अंशुमान और उनके पुत्र दिलीप जीवन पर्यन्त तपस्या करके भी गंगाजी को मृत्युलोक में ला न सके। सगर के वंश में अनेक राजा हुए कोई भी सफल न हुआ। अंत में महाराज भागीरथ ने गंगाजी को इस लोक में लाने के लिए कठोर तपस्या की। उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने गंगा को अपने कमंडल से छोड़ने के लिए तैयार हो गए।


अब समस्या थी कि गंगा के वेग को सम्भालेगा कौन? ब्रह्माजी ने बटकाया कि भूलोक में गंगा का भार एवं वेग संभालने की शक्ति भगवान शिव में है। भागीरथ ने भगवान शिव की आराधना की। ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमण्डल से छोड़ा और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेट कर जटाएँ बांध लीं। गंगाजी देवलोक से छोड़ी गईं और शंकर जी की जटा में गिरते ही विलीन हो गईं। गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका।


पौराणिक कथाओं के अनुसार गंगा शंकर जी की जटाओं में भ्रमण करती रहीं। अब भागीरथ ने एक बार फिर भगवान शिव को प्रसन्न किया।  इस प्रकार शिवजी की जटाओं से छूटकर गंगाजी हिमालय में ब्रह्माजी के द्वारा निर्मित ‘बिन्दुसर सरोवर’ में गिरी, उसी समय इनकी सात धाराएँ हो गईं। आगे-आगे भागीरथ दिव्य रथ पर चल रहे थे, पीछे-पीछे सातवीं धारा गंगा की चल रही थी।


पृथ्वी पर जी मार्ग से गंगाजी जा रही थीं, उसी मार्ग में ऋषिराज जहु का आश्रम था। ऋषिराज जहु गंगाजी को पी गए। देवताओं के प्रार्थना करने पर उन्हें पुन: जांघ से निकाल दिया। तभी से ये जाह्नवी कहलाईं। इस प्रकार अनेक स्थलों को तारती हुई जाह्नवी ने कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचकर सगर के साठ हज़ार पुत्रों के भस्मावशेष को तारकर उन्हें मुक्त किया। भगीरथ के नाम पर गंगा का एक नाम भागीरथी भी है।


...................................................................................................................................................................


तीर्थमयी सुरसरिता मां गंगा का धार्मिकः एवं सांस्कृतिक महत्व


भारत की सांस्कृतिक विरासत नदियों के तटों पर फल्ली-फूली है। हर भारतीय नदियों से रागात्मक लगाव रखता है। भारत की पवित्र नदियों में  गंगा पवित्रतम है। का वास्तविक स्रोत गोमुख माना जाता है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता में यह नदी मां के रूप में पूजित है। यमुना, गोमती, सरयू रामगंगा, कोसी, चंबल, सोन आदि गंगा की सहायक नदियां हैं। हरिद्वार, ऋषिकेश, प्रयागराज, वाराणासी और पटना आदि गंगा के किनारे बसे प्रमुख धार्मिक नगर हैं। प्रयागराज में 12 वर्ष और हरिद्वार में 06 वर्ष के अंतराल पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। 


गंगा नदी सनातन समाज के लिए पूज्य व पवित्र है। दक्षिण भारत के लोग दीपावली के दिन जब स्नानोपरान्त एक दूसरे से मिलते हैं तो एक दूसरे से पूछते हैं कि क्या आपका गंगा स्नान हो गया? भारत में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति प्रयाग, काशी, हरिद्वार, बद्रीनाथ आदि तीर्थ स्थानों में जाकर स्नान करने के लिए तड़पता है। हर व्यक्ति गंगा दर्शन व गंगा स्नान को अपने जीवन का लक्ष्य मानता है। सनातनी अपने पूजा गृह में गंगा जल रखते हैं। उस गंगा जल की विधिवत पूजा करते है। मरणासन्न व्यक्ति को गंगा जल पिलाने की परंपरा है। 


भारतीय सांस्कृतिक एवं सामजिक परंपरा में गंगा का माहात्मय वर्णणातीत है। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है- ‘स्रोतसामस्मि जाह्नवी’ अर्थात नदियों में मैं जाह्नवी (गंगा) हूं। महाभारत में गंगा के बारे में कहा गया है- ‘पुनाति कीर्तिता पापं द्रष्टा भद्र प्रयच्छतिअवगाढ़ा च पीता च पुनात्या सप्तम कुलम।।’ अर्थात गंगा अपना नाम उच्चारण करने वाले के पापों का नाश करती है। दर्शन करने वाले का कल्याण करती है तथा स्नान-पान करने वाले की सात पीढ़ियों तक को पवित्र करती है।


इसी तरह वेदों एवं पुराणों में गंगा को बारंबार तीर्थमयी कहा गया है। ‘सर्वतीर्थमयी गंगा सर्वदेवमया हरि:।’’ (नृसिंह पुराण) गंगा जल धार्मिक ग्रन्थों में श्रेष्ठतम कहा गया है। कहा गया है की -‘गंगे तव दर्शनात् मुक्ति:।’ पूरे विश्व में ऐसी कोई नदी नहीं जिसे इतना आदर मिला हो। इसे केवल जल का स्रोत नहीं वरन देवी मानकर पूजा जाता है। कोई भी धार्मिक अनुष्ठान गंगा के बिना पूरा नहीं होता।


‘गंगा’ शब्द हमारे लिए लिए प्रात:स्मरणीय मंत्र है। इसलिए ही तो हम भारत की सभी नदियों को गंगा ही मानते हैं। यदि किसी नदी को दिव्यता प्रदान करनी है तो उसे गंगा कह कर सम्बोधित करना हमारी भगवती गंगा के प्रति अनादि काल से चली आने वाली भावना का ही प्रतिफल कहा जाएगा। मां गंगा सब के लिए पुण्य प्रदायिनी आत्म-स्वरूपा है। जीवनदायिनी हैं।


......................................................................................................................................................................



ऐसे करें मां गंगा की पूजा, सभी मनोकामनाएं होंगी पूरी 


भारतीय समाज उत्सवजीवी समाज है। यहां प्रकृति  के हर अवयव की पूजा होती है। पहाड़ो, नदियों, सरोवरों और समुद्र की पूजा होती है।  लोग आकाश और ग्रहों की भी आराधना करते हैं। फिर गंगा तो सुरसरिता है। वैसे तो गंगा सदा वंदनीय हैं, लेकिन, उनके अवतरण दिवस अर्थात  गंगा दशहरा पर्व पर सनातनी लोग विशेष पूजा करते हैं। गंगा दशहरा के दिन लोग शुभ संकल्प लेकर ही डुबकी लगाते हैं। जहां पर गंगा नहीं हैं, वहाँ के लोग नजदीक स्थित नदी या फिर तालाब को ही गंगा मानकर उसकी  पूजा कर उसमे स्नान करते हैं। शास्त्रों में गंगा स्नान और पूजन की विधि बताई गई है।  


शास्त्रों के अनुसार गंगा तट से दूर के लोगों अथवा जो गंगा तट तक न जा सकने वाले लोग समीप के किसी भी जलाशय या घर के शुद्ध जल से स्नान करके स्वर्ण आदि के पात्र में त्रिनेत्र, चतुर्भुज, सर्वावय विभूषित, रत्न कुम्भधारिणी, श्वेत वस्त्रों से सुशोभित तथा वर और अभय मुद्रा से युक्त श्री गंगाजी की प्रशान्त मूर्ति अंकित करें अथवा किसी साक्षात मूर्ति के करीब बैठकर  'ओम नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः' से आह्वान आदि षोड्शोपचार पूजन करें। 


षोड्शोपचार पूजन के बाद 'ओम नमो भगवते ऐं ह्रीं श्रीं हिलि, हिलि, मिली मिली गंगे मां पावय पावय स्वाहा' मंत्र से पांच पुष्पांजलि अर्पण करके गंगा को पृथ्वी पर लाने वाले भगीरथ का और जहां से उनका उद्भव हुआ है, उस हिमालय का नाम मंत्र से पूजन करें। फिर दस फल, दस दीपक और दस सेर तिल का गंगायै नमः कहकर दान करें। साथ ही घी मिले हुए सत्तू और गुड़ के पिण्ड जल में डालें। यदि सामर्थ्य हो तो सोने का कछुआ, मछली और मेढक आदि का भी पूजन करके जल में विसर्जित करें।


शास्त्रों के अनुसार मां गंगा के पूजन के समय कोई शुभ संकल्प लेकर दस बार डुबकी लगानी चाहिए। उसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर घी से चुपड़े हुए दस मुट्ठी काले तिल हाथ में लेकर जल में डाल दें। इसके बाद इस मंत्र के साथ मां गंगा की प्रतिमा का पूजन करें : 


'नमो भगवत्यै दशपापहरायै गंगायै नारायण्यै रेवत्यै,


शिवायै अमृतायै विश्वरूपिण्यै नन्दिन्यै ते नमो नमः'। 


....................................................................................................................................................................